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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना | RSS Prarthana in Hindi । Namaste Sada Vatsale Maatribhoome Lyrics | Sangh Prarthana | RSS Prayer in Hindi । Rashtriya Swayamsevak Sangh Prarthana in Hindi
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना | RSS Prarthana in Hindi । Namaste Sada Vatsale Maatribhoome Lyrics | Sangh Prarthana | RSS Prayer in Hindi । Rashtriya Swayamsevak Sangh Prarthana in Hindi
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना 1939 में नागपुर के पास सिन्दी में हुई बैठक में तैयार किया गया । प्रारम्भ में जो प्रार्थना तैयार हुई वो आधी मराठी व आधी हिन्दी भाषा में थी । तत्पश्चात संस्कृत भाषा में अनुवाद किया गया और कुछ संशोधन भी किया गया । प्रार्थना के अन्त में 'भारत माता की जय' हिन्दी में रखा गया । नरहरि नारायण भिड़े ने प्रार्थना की रचना और रूपांतरण संस्कृत में किया था । सबसे पहले यादव राव जोशी ने इसे 23 अप्रैल 1940 को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में गाया ।
RSS PRAYER |
इसे भी देखें : RSS Prarthana in English । RSS Prayer in English
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।1।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दु राष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।2।।
समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरं व्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषाते भृशम् ।।3।।
।। भारत माता की जय ।।
प्रार्थना का भावार्थ :
हे प्यार करने वाली मातृभूमि!
मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ।
तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है।
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि!
तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो।
मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर!
हम हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत तुझे आदरसहित प्रणाम करते हैं।
तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है।
उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे।
हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे,
जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके,
ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये, ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया,
यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।
उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है।
तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे।
तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर
इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो।
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